Maila Aanchal
T**Y
हिंदी साहित्य का पहला आंचलिक उपन्यास
मैला आंचल 1954 में प्रकाशित एक आँचलिक उपन्यास है।ये उपन्यास बिहार के पूर्णिया के पास बसे मेरीगंज नामक गाँव पर लिक्खा गया है। मेरीगंज का नाम मार्टिन की पत्नी "मेरी" के नाम पर पड़ा। इस गाँव में तीन प्रमुख दल हैं राजपूत, कायस्थ और यादव ।क्यों इस उपन्यास को पढ़ें ?1 इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसका नायक कोई व्यक्ति नहीं है, पूरा का पूरा अंचल ही इसका नायक है। दूसरी प्रमुख बात यह है कि मिथिलांचल की पृष्ठभूमि पर रचे इस उपन्यास में उस अंचल की भाषा विशेष का अधिक से अधिक प्रयोग किया गया है। ख़ूबी यह है कि यह प्रयोग इतना सार्थक है कि वह वहाँ के लोगों की इच्छा-आकांक्षा, रीति-रिवाज़, पर्व-त्यौहार, सोच-विचार, को पूरी प्रामाणिकता के साथ पाठक के सामने उपस्थित करता है। रेणु जी ने ही सबसे पहले 'आंचलिक' शब्द का प्रयोग किया था। इसकी भूमिका 9 अगस्त, 1954 को लिखते हुए फणीश्वरनाथ रेणु कहते हैं कि- यह है मैला आंचल, एक आंचलिक उपन्यास। उदाहरण के लिए "इंकलाब" को "इनकिलास" लिखा गया है, "ज्योतिष" को "जोतकी" और ऐसे बहुत से शब्दों का चयन भूकोलिक दृष्टि के अंतर्गत किया गया है ।2- भारत के ग्रामीण जीवनशैली में सिर्फ़ सुख नहीं बल्कि दुःखों का पहाड़ है, लोग मरते हैं बीमारियों से, अंधविश्वास ने ऐसा जाल फैला रखा है कि उससे बाहर आना मुमकिन नहीं लगता है। उपन्यास में कितने ही जगह आपको इस बात का आभास होगा जैसे डॉक्टर जिसने वहाँ रह कर वहाँ के लोगों की सेवा की उसके बारे में भी क्या धारणा बनाई लोगों ने देखिए " गाँव में हैजा भी उन्होंने फैलाया था।...गाँव के लोगों को कमजोर कर दिया।...हाँ, हैजा की सूई लेने के बाद...आज भी जब काम-धन्धा करने लगते हैं तो आखों के आगे भगजोगनी उड़ने लगती है।...देखने में कैसा बमभोला था ! मालूम होता था, देवता है। भीतर-ही-भीतर इतना बड़ा मारखू1 आदमी था सो कौन जाने ! जोतखी काका ठीक ही कहते थे। "3 - इसके किरदार। इस उपन्यास में 15 से ज़ियादा किरदार हैं और हर किरदार कैसे कहानी को एक नई दिशा प्रदान करते हैं भले उनका ज़िक्र 4 से 5 वाक्य में हुआ हो एक देखने लायक चीज़ है। सभी किरदारों में सबसे ज़ियादा मेरे दिल के करीब जो आये वो हैं डॉ प्रशान्त और उनकी प्रेमिका उर्फ़ पत्नी कमली ।कहानी है मेरीगंज गाँव की। यहाँ के मलेरिया सेन्टर पर काम करने आये डॉ प्रशांत की। तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद की , कांग्रेस के कार्यकर्ता बालदेव जी की। भारत के आज़ादी के पहले और बाद के दृश्य और दृष्टिकोण की। कहानी है एक अबला नारी लक्षमी के तबाह हो जाने की। कहानी है एक बाप की अपनी बेटी के गर्भ को देख पागल हो जाने की। कहानी है फॉरबिसगंज के एक नेता के डॉक्टर को कम्युनिस्ट पार्टी का बता उसे नज़रबन्द करने की। कहानी है ममता के उसके प्यार को त्यागने की। ये एक जगह की कहानी है जहाँ इतनी सारी लघु कहानियाँ चल रहीं है कि आप इसे समाजिक उपन्यास में रखें या प्रेम के श्रेणी में डालें इस बात पर बहस की जा सकती है। मैं ये निर्णय लेने में असफ़ल रहा हूँ।4- मैला आंचल आपकी आँखों से पट्टी हटा कर आपको वास्तिवक जीवन और उसकी सच्चाई से रूबरू कराता एक कमाल का उपन्यास है ।क्यों ना पढ़ें1- अगर आप को बिहार के पूर्णिया के भाषा का ज्ञान नहीं है बहुत हद तक संभव है आप क़िताब का लुत्फ़ नहीं ले पाएंगे और पढ़ने में बहुत कठिनाई होगी ।उपन्यास का एक अंश जो हमें बहुत अच्छा लगा आपके साथ साझा करता हूँ " डाक्टर ने इस बार आस-पास के पन्द्रह गाँवों का परिचय प्राप्त किया है; भयातुर इंसानों को देखा है, बीमार और निराश लोगों की आँखों की भाषा को समझने की चेष्टा की है। उसे मध्यवित्त किसानों की अन्दर हवेली और बेजमीन मजदूरों की झोपड़ियों में आने का सौभाग्य या दुर्भाग्य प्राप्त हुआ है। रोगियों को देखकर उठते समय, छींके पर टँगी हुई खाली मिट्टी की हाँड़ियों से उसका सिर टकराया है। सात महीने के बच्चे को बथुआ और पाट के साग पर पलते देखा है। उसने देखा है...गरीबी, गन्दगी और जहालत से भरी हुई दुनिया में भी सुन्दरता जन्म लेती है। किशोर-किशोरियों और युवतियों के चेहरे पर एक विशेषता देखी है उसने। कमला नदी के गड्ढों में खिले हुए कमल के फूलों की तरह जिन्दगी के भोर में वे बड़े लुभावने, बड़े मनोहर और सुन्दर दिखाई पड़ते हैं, किन्तु ज्यों ही सूरज की गर्मी तेज हुई, वे कुम्हला जाते हैं। शाम होने से पहले ही पपड़ियाँ झड़ जाती हैं !...कश्मीर के कमल और पूर्णिया के कमल में शायद यही फर्क है।...और कमली तो राजकमल ! "‘‘हुजूर, लड़की की जात बिना दवा-दारू के ही आराम हो जाती है !’’ ...लड़की की जाति बिना दवा-दारू के ही आराम हो जाती है ! लेकिन बेचारे बूढ़े का इसमें कोई दोष नहीं। सभ्य कहलानेवाले समाज में भी लड़कियाँ बला की पैदाइश समझी जाती हैं। जंगल-झार ! "©® तरुण पाण्डेय
S**N
रेनू की एक कालजई रचना
इस उपन्यास को कई बार पड़ा हुं। फिर से इस उपन्यास को ऑर्डर करके मंगाया और पड़ा। अमेजन की सर्विस बड़िया थी। समय पर इस पुस्तक को पहुंचाया।
J**N
Book
Good book
R**R
मैला आंचल का आंचलिक परिदृश्य
मेरे द्वारा पढ़ी गई अब तक के सबसे अच्छी रचना.मैला आँचल को पढ़ना एक ऐसी यात्रा पर निकलने के समान है जिसमे कहीं महकते हुए फूलों के चादर मिलते हैं तो कही अंगारों से दहकते पथ पर चलना पड़ता है!मैला आँचल एक उपन्यास ही नही है बल्कि इस पुस्तक में सिमटा हुआ एक संसार है,और जैसे ही आप इस संसार में प्रवेश करते हैं तो आप भी इस संसार के हिस्सा बन जाते हैं,और एक यात्रा पर निकल जाते हैं!मैला आँचल उन बेजुबानों की आवाज़ है जिन्हें कभी सुना नही गया था,उन निर्दोषो के ज़ख्मों पर मलहम है जो गरीबी,अशिक्षा,और असमानता की व्यस्था में जन्म लेने के कारण दुर्भाग्य से भरे जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं"गन्ही महतमा की जै".....
S**I
Must buy
What a gem of a piece
S**L
Book not having all original stories
Comparing with original book of Rajkamal publications, it has not covered all original texts. Original book is having 46 sections in part-1 but this book is having only 33 and even some sections are having some missing text. Don’t buy. Original book cost is 120 only
Y**A
Do read
A beautiful story set in the years leading to Independence and the months thereafter in a small village, Meriganj, in a remote corner of Bihar. The language carries the aroma of earth after the first showers of monsoon.One encounters patriotism, politics, caste, hypocrisy, exploitation, sincerity- a whole potpourri of traits through a wide variety of characters. And running through the book the love between an idealistic doctor and the landlord's daughter.As Independence dawns, one sees idealism evaporate and hopes belied. But Renu doesn't leave you in the dark. He shows a glimmer of light at the edge of the darkness.
A**.
Not the original, it's just a summary
Cover par "संक्षिप्त संस्करण " kahi nhi chpa hai.. Aur jb deliver hota hai to wha pr likha hai. Original book me lgbhg 300+ page hain isme bs 150 200 pages h
V**R
एक संक्षिप्त सारांश
सरलता से कई पेचीदा किस्सों को शब्दों का आकार देना, उन्हें पूरी कहानी भर जोड़े रखना, पाठक में अगले पृष्ठ को पढ़ने की उत्सुकता बरकार रखना, एक बड़े लेखक की निशानी होती है । फणीश्वर नाथ रेणु की ये रचना इसी संदर्भ में अमर रहेगी । आज़ादी से पहले, आज़ादी के बाद और गांधी जी की मृत्यु जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को जोड़ कर जाती, समाज की हालत को इस किताब में एक व्यावहारिक तरीके से रेणु जी ने संचय किया है । हिंदी पाठकों के लिए ये किताब सदैव के लिए खजाना रहेगी । ज़रूर पढ़ें ।
ترست بايلوت
منذ 4 أيام
منذ يومين